उस का तरकश ख़ाली होने वाला है
मेरे नाम का तीर है कितने तीरों में
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अल्फ़ाज़ की गिरफ़्त से है मावरा हनूज़
लफ़्ज़ों का नैरंग है मेरे फ़न के जादू से
तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो
अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया
डूबना है उस से ये इक़रार कर लेना मिरा
कौन पूछे मुझ से मेरी गोशा-गीरी का सबब
शोरिश-ए-ख़ाकिस्तर-ए-ख़ूँ को हवा देने से क्या
लफ़्ज़ ओ बयाँ के पस-मंज़र तक इक क़ौस-ए-इम्कानी और
छोड़ गया वो नक़्श-ए-हुनर अपना तुग़्यानी में
अब वो मोड़ आया कि हर पल मो'तबर होने को है
'रम्ज़' अधूरे ख़्वाबों की ये घटती बढ़ती छाँव
भटक जाएगा दिल अय्यारी-ए-इदराक से निकलें