सारे इम्कानात में रौशन सिर्फ़ यही दो पहलू
एक तिरा आईना-ख़ाना इक मेरी हैरानी
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न साथ आ मिरे मैं गिरते फ़ासलों में हूँ
हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
शोरिश-ए-ख़ाकिस्तर-ए-ख़ूँ को हवा देने से क्या
दिए मुंडेरों के रौशन क़तार होने लगे
तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
नवाह-ए-दिल में ये मेरी मिसाल जलते रहें
क्या अब मिरी कहानी में
तैरता मौज-ए-हवा सा आसमानों में कहीं
पल पल मिरी ख़्वाहिश को फिर अंगेज़ किए जाए
अभी रंग-ए-रब्त अयाँ है क़ौस-ए-ख़याल से
तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो