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उस के जुनूँ का ख़्वाब है किन ताबीरों में - मोहम्मद अहमद रम्ज़ कविता - Darsaal

उस के जुनूँ का ख़्वाब है किन ताबीरों में

उस के जुनूँ का ख़्वाब है किन ताबीरों में

अच्छा वो लगता है जकड़ा ज़ंजीरों में

अब तो मेरे लहू तक बात पहुँचती है

कौन सा रंग भरूँ उस की तस्वीरों में

बन जाते हैं एक ख़बर ढह जाने की

अपना शुमार भी है कच्ची तअमीरों में

उस का तरकश ख़ाली होने वाला है

मेरे नाम का तीर है कितने तीरों में

मुझ से सीखो हर्फ़-ओ-नवा की जादूगरी

ढूँड रहे हो क्या अंधी तहरीरों में

मेरे ज़ेर-ए-क़दम है 'रम्ज़' इक़्लीम-ए-सुख़न

इक दुनिया ये भी है मिरी जागीरों में

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