तैरता मौज-ए-हवा सा आसमानों में कहीं

तैरता मौज-ए-हवा सा आसमानों में कहीं

इक परिंदा गुम हुआ ऊँची उड़ानों में कहीं

मैं हक़ीक़त हूँ किसी किरदार में मुझ को न ढाल

लोग दोहराएँ न मुझ को दास्तानों में कहीं

रात चुप है इक्का-दुक्का चप्पुओं के साज़ पर

गीत कोई गूँजता है बादबानों में कहीं

रात ज़ख़्मी हो रही है लम्हा लम्हा मेरे साथ

फड़फड़ाते हैं परिंदे आशियानों में कहीं

फ़न की मस्ती देखना बाहर हिसार-ए-हर्फ़ से

सोचना बहता है दरिया साएबानों में कहीं

रौंदना घोड़े की टापों से मिरा बाक़ी बदन

और सर ले जा के फेंक आना चटानों में कहीं

लोग यकजा कर रहे हैं 'रम्ज़' मेरी ख़ाक को

देखना फिर मुझ को मेरे क़द्र-दानों में कहीं

(561) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tairta Mauj-e-hawa Sa Aasmanon Mein Kahin In Hindi By Famous Poet Mohammad Ahmad Ramz. Tairta Mauj-e-hawa Sa Aasmanon Mein Kahin is written by Mohammad Ahmad Ramz. Complete Poem Tairta Mauj-e-hawa Sa Aasmanon Mein Kahin in Hindi by Mohammad Ahmad Ramz. Download free Tairta Mauj-e-hawa Sa Aasmanon Mein Kahin Poem for Youth in PDF. Tairta Mauj-e-hawa Sa Aasmanon Mein Kahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Tairta Mauj-e-hawa Sa Aasmanon Mein Kahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.