मोहम्मद अहमद रम्ज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मोहम्मद अहमद रम्ज़
नाम | मोहम्मद अहमद रम्ज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Mohammad Ahmad Ramz |
जन्म की तारीख | 1932 |
जन्म स्थान | Kanpur |
उस का तरकश ख़ाली होने वाला है
तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो
सारे इम्कानात में रौशन सिर्फ़ यही दो पहलू
'रम्ज़' अधूरे ख़्वाबों की ये घटती बढ़ती छाँव
कौन पूछे मुझ से मेरी गोशा-गीरी का सबब
जैसे ख़ला के पस-मंज़र में रंग रंग के नक़्श-ओ-निगार
हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
इक सच की आवाज़ में हैं जीने के हज़ार आहंग
और कोई दुनिया है तेरी जिस की खोज करूँ
अल्फ़ाज़ की गिरफ़्त से है मावरा हनूज़
अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया
ये ज़ाद-ए-राह किसी मरहले में रख देना
ये भी कोई बात कि सिर्फ़ तमाशा कर
उट्ठे ग़ुबार-ए-शोर-ए-नफ़स तो वहशत मत करना
उस के जुनूँ का ख़्वाब है किन ताबीरों में
उस पार बनती मिटती धनक उस के नाम की
थी मिरी हम-सफ़री एक दुआ उस के लिए
तैरता मौज-ए-हवा सा आसमानों में कहीं
तैरता मौज-ए-हवा सा आसमानों में कहीं
सुलगने राख हो जाने का डर क्यूँ लग रहा है
शोरिश-ए-ख़ाकिस्तर-ए-ख़ूँ को हवा देने से क्या
फिर इक तीर सँभाला उस ने मुझ पे नज़र डाली
पल पल मिरी ख़्वाहिश को फिर अंगेज़ किए जाए
नवाह-ए-दिल में ये मेरी मिसाल जलते रहें
न साथ आ मिरे मैं गिरते फ़ासलों में हूँ
मुहीत-ए-पाक पे मौज-ए-हुनर में रौशन हूँ
मेरे लिए क्या शोर भँवर का क्या मौजों की रवानी
मेरे लहू की सरशारी क्या उस की फ़ज़ा भी कितनी देर
लफ़्ज़ों का नैरंग है मेरे फ़न के जादू से