पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं
पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं
अब सूरत-ए-आईना बिखरने का नहीं मैं
जो ज़ात का मेरी है ख़ला चीज़ दिगर है
जो भर भी गए ज़ख़्म तो भरने का नहीं मैं
देखें न नज़र भर के मुझे देर तलक आप
जो चढ़ गया नज़रों में उतरने का नहीं मैं
की बादा-कशी तर्क-ए-मआबिद के मुक़ाबिल
अब इस से ज़ियादा तो सुधरने का नहीं मैं
दीदार तिरा मेरे लिए राहत-ए-जाँ है
बे-देखे तुझे जाँ से गुज़रने का नहीं मैं
अब जुर्म-ए-मोहब्बत की मिले कोई भी पादाश
तफ़तीश के दौरान मुकरने का नहीं मैं
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