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पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं - मोहम्मद आबिद अली आबिद कविता - Darsaal

पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं

पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं

अब सूरत-ए-आईना बिखरने का नहीं मैं

जो ज़ात का मेरी है ख़ला चीज़ दिगर है

जो भर भी गए ज़ख़्म तो भरने का नहीं मैं

देखें न नज़र भर के मुझे देर तलक आप

जो चढ़ गया नज़रों में उतरने का नहीं मैं

की बादा-कशी तर्क-ए-मआबिद के मुक़ाबिल

अब इस से ज़ियादा तो सुधरने का नहीं मैं

दीदार तिरा मेरे लिए राहत-ए-जाँ है

बे-देखे तुझे जाँ से गुज़रने का नहीं मैं

अब जुर्म-ए-मोहब्बत की मिले कोई भी पादाश

तफ़तीश के दौरान मुकरने का नहीं मैं

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