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न कारवाँ का हमारे कोई निशान रहा - मोहम्मद आबिद अली आबिद कविता - Darsaal

न कारवाँ का हमारे कोई निशान रहा

न कारवाँ का हमारे कोई निशान रहा

न हम-सफ़र न ही कश्ती न बादबान रहा

ज़मीन अपनी तरफ़ खींचती रही मुझ को

सवार सर पे सदा मेरे आसमान रहा

मुझे ख़बर थी गया था तू ग़ैर से मिलने

मैं जान-बूझ के महफ़िल में बे-ज़बान रहा

तमाम उम्र मुसल्लत रहा वो दिल पे मिरे

तमाम उम्र मैं ज़ालिम का मेज़बान रहा

हुआ न क़ैद-ए-ज़मान-ओ-मकाँ से मैं आज़ाद

ज़मीं से दूर मगर ज़ेर-ए-आसमान रहा

शरीक वो भी था मेरे ख़िलाफ़ साज़िश में

कि जिस के साथ सदा मेरा खान-पान रहा

न दिल में जलती हुई आग बुझ सकी 'आबिद'

न सर पे मेरे कभी कोई साएबान रहा

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