सर न सज्दे से उठा ताख़ीर पर ताख़ीर कर
सर न सज्दे से उठा ताख़ीर पर ताख़ीर कर
ज़र्रे जो तहत-ए-जबीं आए उन्हें इक्सीर कर
बंदा-ए-रब बन के रौशन अपनी तू तक़दीर कर
आलम-ए-कुन है तिरा क़ब्ज़े में ये जागीर कर
अश्क-बारी हुब्ब-ए-अहमद उन्स-ए-मख़लूक़-ए-जहाँ
ये हैं अजज़ा-ए-सलासा इन से दिल ता'मीर कर
दामन-ए-हस्ती में तेरे जो हैं ज़र्रे ख़ाक के
ज़र्ब-ए-अल्लाह-हू से इस मिट्टी को पुर-तनवीर कर
इस तरह से कुछ न कुछ शायद कि हल्का बोझ हो
इज़्तिराब-ए-दिल 'नज़र' अपना तू आलमगीर कर
(750) Peoples Rate This