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चेहरा उन का सुब्ह-ए-रौशन गेसू जैसे काली रात - मोहम्मद अब्दुलहमीद सिद्दीक़ी नज़र लखनवी कविता - Darsaal

चेहरा उन का सुब्ह-ए-रौशन गेसू जैसे काली रात

चेहरा उन का सुब्ह-ए-रौशन गेसू जैसे काली रात

बातें उन की सुब्हान-अल्लाह गोया क़ुरआँ की आयात

रुख़ का जल्वा पिन्हाँ रक्खा पैदा कर के मख़्लूक़ात

हुस्न-ए-ज़ाहिर सब ने देखा किस ने देखा हुस्न-ए-ज़ात

जज़्बे की सब गर्मी सर्दी बहते अश्कों की बरसात

हम ने सारे मौसम देखे हम पर गुज़रे सब हालात

ग़म की सारी चालें गहरी बचते बचते आख़िर-कार

देखा इस बेचारे दिल ने बेबस हो कर खाई मात

जीते-जी कब दुनिया पूछे मरते ही इस दर्जा प्यार

हाथों-हाथ उठाए दुनिया लाए अश्कों की सौग़ात

हुस्न-ए-ख़ुद-बीं जिस की फ़ितरत शेख़ी शोख़ी ज़ुल्म-ओ-जौर

दाम-ए-उल्फ़त में फँस जाए मेरी आँखों देखी बात

उम्र-ए-पायाँ की मंज़िल में अहद-ए-माज़ी आए याद

अब भी 'नज़र' में रक़्साँ मेरे भूले बचपन के लम्हात

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