उन के जल्वे सहर-ओ-शाम तक आ पहुँचे हैं

उन के जल्वे सहर-ओ-शाम तक आ पहुँचे हैं

मेरे आग़ाज़ अब अंजाम तक आ पहुँचे हैं

हज़रत-ए-ख़िज़्र परेशाँ न हो आराम करें

हम भी अब मंज़िल-ए-आराम तक आ पहुँचे हैं

तोहमत-ए-इश्क़ में हम आज अकेले तो नहीं

वो भी अब मरकज़-ए-इल्ज़ाम तक आ पहुँचे हैं

मय-कशो मुज़्दा-ए-मस्ती कि जनाब-ए-वाइज़

बढ़ के अब तज़्किरा-ए-जाम तक आ पहुँचे हैं

उस को मेराज-ए-वफ़ा क्यूँ न कहूँ जब अक्सर

बिल-इरादा वो मिरे नाम तक आ पहुँचे हैं

ये मिरा ज़ब्त कि मैं अपनी जगह हूँ मोहतात

दर-हक़ीक़त मुझे पैग़ाम तक आ पहुँचे हैं

देख कर तंग-दिली बज़्म में साक़ी की 'सफ़ीर'

रिंद भी जुरअत-ए-नाकाम तक आ पहुँचे हैं

(558) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Un Ke Jalwe Sahar-o-sham Tak Aa Pahunche Hain In Hindi By Famous Poet Mohammad Abbas Safiir. Un Ke Jalwe Sahar-o-sham Tak Aa Pahunche Hain is written by Mohammad Abbas Safiir. Complete Poem Un Ke Jalwe Sahar-o-sham Tak Aa Pahunche Hain in Hindi by Mohammad Abbas Safiir. Download free Un Ke Jalwe Sahar-o-sham Tak Aa Pahunche Hain Poem for Youth in PDF. Un Ke Jalwe Sahar-o-sham Tak Aa Pahunche Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Un Ke Jalwe Sahar-o-sham Tak Aa Pahunche Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.