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तिरे दीवाने इज़हार-ए-मोहब्बत कर नहीं सकते - मोहम्मद अब्बास सफ़ीर कविता - Darsaal

तिरे दीवाने इज़हार-ए-मोहब्बत कर नहीं सकते

तिरे दीवाने इज़हार-ए-मोहब्बत कर नहीं सकते

मोहब्बत कर के तौहीन-ए-मोहब्बत कर नहीं सकते

तअ'ल्लुक़ ख़ास है दिल को ख़याल-ए-रंज-ओ-राहत से

किसी को हम शरीक-ए-रंज-ओ-राहत कर नहीं सकते

जो शैदा हैं मोहब्बत के जो दीवाने हैं उल्फ़त के

वो अपने दुश्मनों से भी अदावत कर नहीं सकते

जवाँ हैं जिन के पहलू में ख़याल-ए-पास ख़ुद्दारी

ज़रूरत में भी इज़हार-ए-ज़रूरत कर नहीं सकते

किया ईमान ताज़ा क़ामत-ए-दिलदार ने ऐसा

'सफ़ीर' अब हम भी इंकार-ए-क़यामत कर नहीं सकते

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