तलाश फ़रेब-ए-मुतलक़ की
फ़ाहिशा औरतो
क्या कोई
तुम में ऐसा नहीं
जो मुझे
इस तरह छल सके
मैं नशात-ए-गुमाँ के सुरूर-ए-अजब-जावेदाँ को लिए
नर्म आग़ोश से
सख़्त आग़ोश तक
एक बर-हक़ सफ़र करूँ
फ़ाहिशा औरतो
वो क़रीब-ए-मुसलसल की दौलत कहाँ से मिले
क्या कोई
तुम में ऐसा नहीं
मुझ से जो
झूट को सूँघ लेने की ख़ू छीन ले
जुस्तुजू छीन ले
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