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तलफ़ करेगी कब तक आरज़ू की जान आरज़ू - मोहम्मद अाज़म कविता - Darsaal

तलफ़ करेगी कब तक आरज़ू की जान आरज़ू

तलफ़ करेगी कब तक आरज़ू की जान आरज़ू

तड़प रही है हर तरफ़ लहूलुहान आरज़ू

फिरा के दीदा-ए-तपाँ में मोम के मुजस्समे

कहाँ कहाँ करेगी दीद का ज़ियान आरज़ू

ज़रा सा हाथ क्या लगा हबाब सा बिखर गया

जिसे समझ रही थी एक आसमान आरज़ू

तू चश्म ही में रह अगर पसंद है कुशादगी

कि दिल है तंग और इस में यक जहान आरज़ू

इसी के हैं सबब से सब ये हिज्र की सऊबतें

कहाँ से आ गई हमारे दरमियान आरज़ू

तू आफ़्ताब है मैं गुल दुआ तिरे सुकून की

किसी की शान क़हर है किसी की शान आरज़ू

इलाही ख़ैर इतने सिन पे आँधियों की दोस्ती

अभी तो सीख पाई भी नहीं उड़ान आरज़ू

शजर हजर ज़मीन आसमाँ सब को ज़ोफ़ है

मगर ये इक जवान की रही जवान आरज़ू

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