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हर कड़े वक़्त पे आईना दिखाया है मुझे - मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी कविता - Darsaal

हर कड़े वक़्त पे आईना दिखाया है मुझे

हर कड़े वक़्त पे आईना दिखाया है मुझे

ज़िंदगी तू ने बड़े प्यार से बरता है मुझे

बढ़ के चूमे हैं ग़म-ए-इश्क़ ने भी मेरे क़दम

ग़म-ए-दौराँ ने भी आँखों पे बिठाया है मुझे

राह-ए-पुर-पेच पे है ज़ुल्फ़-ए-रसा का धोका

दश्त-ए-आग़ोश-ए-तमन्ना नज़र आया है मुझे

अपने ग़म-ख़्वार के अश्कों को तका करता हूँ

गर्दिश-ए-वक़्त ने पलकों पे सजाया है मुझे

अब किसी दर्द का शिकवा न किसी ग़म का गिला

मेरी हस्ती ने बड़ी देर में पाया है मुझे

मैं ग़म-ए-दहर की चादर में छुपा बैठा था

रात भर आ के तिरी याद ने ढूँडा है मुझे

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