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सुनते ही दिल हो गया उस यार का असरार मस्त - मिस्कीन शाह कविता - Darsaal

सुनते ही दिल हो गया उस यार का असरार मस्त

सुनते ही दिल हो गया उस यार का असरार मस्त

होशियारी क्या करे जब दिल हो सौ सौ बार मस्त

शोहरा-ए-आफ़ाक़ उस मह से ये है मस्तों का हाल

फेंकते हैं सर से अपने ख़ाक पर दस्तार मस्त

सर-बरहना बे-सर-ओ-सामाँ जो दिल-अफ़गार हैं

बज़्म-ए-मस्ताँ में वही मशहूर हैं सरदार मस्त

बे-ख़ुदी दीवानगी में इस तरह सरशार हैं

भूलते हैं आप को हो काफ़िर ओ दीं-दार मस्त

कब उन्हें दैर-ओ-हरम याद आए है ऐ ज़ाहिदो

कू-ए-जानाँ में हज़ारों हो गए होश्यार मस्त

कैफ़ियत दोनों जहाँ की है वहाँ हासिल तमाम

जब नज़र आवें किसी जा पर कहीं दो-चार मस्त

हाल आ जाए अभी सब साकिनान-ए-चर्ख़ को

तू भी हो जावे ऐ 'मिस्कीं' सुन के ये अशआर मस्त

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