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कल हम से मुलाक़ात में वो यार जो की बहस - मिस्कीन शाह कविता - Darsaal

कल हम से मुलाक़ात में वो यार जो की बहस

कल हम से मुलाक़ात में वो यार जो की बहस

मैं भी वहीं इक बात में बेज़ार हो की बहस

लड़ते न किसी तरह से उस से कभी हरगिज़

पर क्या करूँ उस वक़्त मैं लाचार हो की बहस

लाया था मिरे दिल की गिरफ़्तारी का सामान

इस वास्ते मैं उस से ब-तकरार हो की बहस

समझा के लगा कहने कि आ हम से तू मिल जा

मैं तेरे लिए बर-सर-ए-बाज़ार हो की बहस

'मिस्कीन' न जो तू हम से अगर दिल से मिलेगा

क्यूँ तू ने मिरा मिस्ल-ए-ख़रीदार हो की बहस

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