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वक़्त के ज़ालिम समुंदर में परेशानी के साथ - मिस्दाक़ आज़मी कविता - Darsaal

वक़्त के ज़ालिम समुंदर में परेशानी के साथ

वक़्त के ज़ालिम समुंदर में परेशानी के साथ

डूब जाता है कोई क्यूँ इतनी आसानी के साथ

मेरी साँसों की महक का भी बहुत चर्चा हुआ

रात जब मैं ने गुज़ारी रात की रानी के साथ

मैं वही हूँ और मेरा मर्तबा मुझ से बुलंद

नाम अपना ले रहा हूँ मैं भी हैरानी के साथ

मैं ने तो कुछ आस्तीं के साँप गिनवाए थे बस

तुम ने क्यूँ आँखें मिलाई हैं पशेमानी के साथ

कर्बला वाले अगर हैं मोहतरम तो मोहतरम

नोश मत जाम-ए-शहादत कीजिए पानी के साथ

इक तबस्सुम का भरम आबाद होंटों पर किए

जी रहे हैं लोग अपनी अपनी वीरानी के साथ

मर गया 'मिस्दाक़' भी सुल्तान-टीपू की तरह

देख कर हमराज़ अपना दुश्मन-ए-जानी के साथ

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