तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है
तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है
उमीद-ए-ज़िंदगी टूटी नहीं है
फ़क़त मिलना-मिलाना कम हुआ है
हमारी दोस्ती टूटी नहीं है
बड़ी आँधी चली है इस चमन में
मगर कोई कली टूटी नहीं है
कमंदें फेंकिए अक़्ल ओ ख़िरद की
फ़सील-ए-आगही टूटी नहीं है
पुराने बाँस के पुल की हमारे
कोई भी आस अभी टूटी नहीं है
सुना है बावजूद-ए-ज़ोर हम ने
धनक रावण से भी टूटी नहीं है
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