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तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है - मिस्दाक़ आज़मी कविता - Darsaal

तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है

तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है

उमीद-ए-ज़िंदगी टूटी नहीं है

फ़क़त मिलना-मिलाना कम हुआ है

हमारी दोस्ती टूटी नहीं है

बड़ी आँधी चली है इस चमन में

मगर कोई कली टूटी नहीं है

कमंदें फेंकिए अक़्ल ओ ख़िरद की

फ़सील-ए-आगही टूटी नहीं है

पुराने बाँस के पुल की हमारे

कोई भी आस अभी टूटी नहीं है

सुना है बावजूद-ए-ज़ोर हम ने

धनक रावण से भी टूटी नहीं है

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