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अच्छी निभी बुतान-ए-सितम-आश्ना के साथ - मिर्ज़ा क़ुर्बान अली बेग सालिक कविता - Darsaal

अच्छी निभी बुतान-ए-सितम-आश्ना के साथ

अच्छी निभी बुतान-ए-सितम-आश्ना के साथ

अब बा'द-ए-मर्ग देखिए क्या हो ख़ुदा के साथ

जब से वो सुन चुके हैं कि हम ख़्वाब में चले

नीची निगाह भी नहीं करते हया के साथ

यूँ गुमरहान-ए-इ'श्क़ हैं रहज़न के साथ ख़ुश

गोया कि हो लिए हैं किसी रहनुमा के साथ

मांगों दुआ-ए-मर्ग तो आमीं कहे अदू

अब उन की बद-दुआ' है मिरे मुद्दआ' के साथ

यूँ कहते हैं कि तुझ को सताए ही जाएँगे

गोया कि मुझ को इश्क़ है अपनी वफ़ा के साथ

ग़ैरों ने बे-दिली से मिरी पाए मुद्दआ'

मैं गुम हुआ न क्यूँ दिल-ए-हसरत-फ़ज़ा के साथ

शर्मिंदा-ए-बुताँ न हुए लाख लाख शुक्र

'सालिक' ख़ुदा ने हम को उठाया वफ़ा के साथ

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