चमन में शब को घिरा अब्र-ए-नौ-बहार रहा
हुज़ूर आप का क्या क्या न इंतिज़ार रहा
Jaun Eliya
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देख लो हम को आज जी भर के
मौत से किस को रुस्तगारी है
गए जो ऐश के दिन मैं शबाब क्या करता
गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं
आप की गर मेहरबानी हो चुकी
ज़हर-ए-इश्क़
कहने में नहीं हैं वो हमारे कई दिन से
साबित ये कर रहा हूँ कि रहमत-शनास हूँ