माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
हम खींच वहीं क़श्क़ा ज़ुन्नार पहन निकले
अल्लाह रे तिरी शोरिश ऐ फ़स्ल-ए-जुनूँ तुझ में
दीवानों की ज़ंजीरें होश्यार पहन निकले
आशिक़ के तईं अपने सज अपनी दिखाने को
मलमल का अंगरखा वो सौ बार पहन निकले
मर्ग़ूब-ए-जुनूँ पाई पोशाक न जब कोई
हम-जामा-ए-उर्यानी नाचार पहन निकले
क्यूँकर न 'हवस' जावे सदक़े फ़लक-ए-नीली
नीलम ही का सब गहना जब यार पहन निकले
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