शाम का अख़बार

देना भाई हाँ मुझे भी शाम का अख़बार एक

फिर किसी ठंडे लहू ने गर्म की होगी ख़बर

कौन से बेटे हुए हैं इस्टिकाटो की नज़्र

आज की शह-सुर्ख़ियों में ख़ून-ए-नाहक़ फिर मिला

ताज़ा ताज़ा ज़र्द काग़ज़ पर गुल-ए-अहमद खिला

किस गली मातम बिछा है

क्या सरों का है शुमार

आठ कॉलम की ख़बर के वास्ते हैं सिर्फ़ चार?

ख़ाक में लुथड़ी हुई सूरत है ये किस फूल की

कहते हैं दीवार-ओ-दर बिल्डिंग है ये स्कूल की

आज तो तस्वीर भी धुँदला गई मक़्तूल की

ना-मुनासिब है रिपोर्टिंग

बे-तुकी मंज़र-कशी

क्यूँ नहीं रख पाते हैं पर्चे का ये मेआर एक

बन गई है अब सहाफ़त जैसे कारोबार एक

देना भाई फिर भी मुझ को शाम का अख़बार एक

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