अश्क-ए-गुलगूँ को न ख़ून-ए-शोहदा को देखा
अश्क-ए-गुलगूँ को न ख़ून-ए-शोहदा को देखा
शोख़ जैसा कि तिरे रंग-ए-हिना को देखा
तुझ को देखा न तिरे नाज़-ओ-अदा को देखा
तेरी हर तर्ज़ में इक शान-ए-ख़ुदा को देखा
हैं तुझे देख के हूरान-ए-बहिश्ती बेताब
या तिरे कुश्ता-ए-अंदाज़ा-ओ-अदा को देखा
तिश्ना-ए-आब-ए-दम-ए-तेग़ ने पीना कैसा
आँख उठा कर न कभी आब-ए-बक़ा को देखा
मुझे काफ़िर ही बताना है ये वाइज़ कम-बख़्त
मैं ने बंदों में कई बार ख़ुदा को देखा
निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-मोअम्बर को चमन में पाया
आते जाते तिरे कूचे में सबा को देखा
'माइल' ईमान है बिल-ग़ैब हमें लोगों का
कि पयम्बर को है देखा न ख़ुदा को देखा
(746) Peoples Rate This