सुब्ह-दम उठ कर तिरा पहलू से जाना याद है
सुब्ह-दम उठ कर तिरा पहलू से जाना याद है
लोटना दिल का जिगर का फड़फड़ाना याद है
यार था पहलू में शीशे की परी थी सामने
क्यूँ दिल-ए-नालाँ तुझे वो भी ज़माना याद है
सुन के अहवाल-ए-मोहब्बत को मिरा बोला वो शोख़
जान देने का तुझे अच्छा बहाना याद है
लोट था दिल क़ामत-ए-दिलदार पर मुद्दत हुई
नख़्ल-ए-तूबा पर था अपना आशियाना याद है
कौन देखे ख़ंदा-ए-गुल की तरफ़ ऐ अंदलीब
एक मुद्दत से किसी का मुस्कुराना याद है
क्या दिखाता है फ़लक अब्र-ए-सियह में रू-ए-माह
हम को बालों में किसी का मुँह छुपाना याद है
हो मुक़ाबिल नाला-ए-दर्द-ए-दिल-ए-उश्शाक़ के
बाग़बाँ बुलबुल को ऐसा भी तराना याद है
हिज्र की शब नींद आए आशिक़-ए-बीमार को
'मुंतही' तुझ को कोई ऐसा फ़साना याद है
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