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मीठी है ऐसी बात उस की - मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही कविता - Darsaal

मीठी है ऐसी बात उस की

मीठी है ऐसी बात उस की

लौंडी है इक नबात उस की

समझा न मैं एक बात उस की

मुझ पर क्या काएनात उस की

आलम है बे-सबात ऐ दिल

इक ज़ात को है सबात उस की

मह उस का है आफ़्ताब उस का

दिन उस का है और रात उस की

किस मुँह से करूँ मैं वस्फ़ उस का

है अक़्ल से दूर ज़ात उस की

मिम्बर पे जो बक रहा है वाइ'ज़

कब सुनता हूँ ख़ैर बात उस की

है दौलत-ए-हुस्न पास तेरे

देता नहीं क्यूँ ज़कात उस की

है जो कि शहीद तेग़-ए-तस्लीम

है मिस्ल-ए-ख़िज़र हयात उस की

दम दे के न नक़्द-ए-दिल को ले-ले

चल जाए कहीं न घात उस की

जो दिल कि है ग़र्क़ बहर-ए-दुनिया

क्यूँकर होगी नजात उस की

दिल जाता है सू-ए-कू-ए-क़ातिल

ख़ालिक़ रखे हयात उस की

दम दे के ले आया यार को दिल

क्या रह गई आज बात उस की

तन्हा नहीं 'मुंतही' किसी जा

तक़दीर है उस के साथ उस की

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