Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_25de2623708faf23d23b0bcd3b054c45, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
दर पे उस शोख़ के जब जा बैठा - मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही कविता - Darsaal

दर पे उस शोख़ के जब जा बैठा

दर पे उस शोख़ के जब जा बैठा

यार सब कहते हैं अच्छा बैठा

ख़ूबी-ए-क़िस्मत-ए-क़ासिद देखो

पास उस शोख़ के क्या जा बैठा

है हबाब-ए-लब-ए-दरिया इंसाँ

जब ज़रा सर को उठाया बैठा

ज़ोफ़-ए-पीरी से बना नक़्श-ए-क़दम

मैं वहीं का हुआ जिस जा बैठा

सूरत-ए-बाद रहा सर-गरदाँ

ख़ाक की तरह मैं उट्ठा बैठा

पाँव फूले जो तिरे कूचे में

काट के दस्त-ए-तमन्ना बैठा

बहर-ए-हस्ती में हबाबों की तरह

सैकड़ों बार मैं उट्ठा बैठा

कब से तेरा फ़लक-ए-शो'बदा-बाज़

देखता हूँ मैं तमाशा बैठा

सामने किस के झुकाया सर को

किस लिए शैख़ तू उट्ठा बैठा

न तो नाला है न अफ़्ग़ाँ ऐ दिल

किस लिए चुप है अकेला बैठा

ख़्वाब-ए-सैर-ए-चमन-ए-आलम है

क्या दिल-ए-ज़ार है फूला बैठा

दामन-ए-दिल पे लगा दाग़-ए-जुनूँ

मुल्क पर इश्क़ का सिक्का बैठा

नक़्द-ए-दिल था जो बिज़ाअ'त में मिरी

इश्क़ में उस को भी खो-खा बैठा

जो गया मुल्क-ए-अदम कौन गया

उस के कूचे में जो बैठा बैठा

दिल को है जज़्बा-ए-उल्फ़त शायद

बक रहा है जो अकेला बैठा

चल बसे 'मुंतही' सब यार तिरे

तू यहाँ करता है अब क्या बैठा

(797) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dar Pe Us ShoKH Ke Jab Ja BaiTha In Hindi By Famous Poet Mirza Maseeta Beg Muntahi. Dar Pe Us ShoKH Ke Jab Ja BaiTha is written by Mirza Maseeta Beg Muntahi. Complete Poem Dar Pe Us ShoKH Ke Jab Ja BaiTha in Hindi by Mirza Maseeta Beg Muntahi. Download free Dar Pe Us ShoKH Ke Jab Ja BaiTha Poem for Youth in PDF. Dar Pe Us ShoKH Ke Jab Ja BaiTha is a Poem on Inspiration for young students. Share Dar Pe Us ShoKH Ke Jab Ja BaiTha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.