बज़्म-ए-आलम में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव
बज़्म-ए-आलम में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव
तेरी सूरत के न देखे प्यारे प्यारे हाथ-पाँव
बहर-ए-उल्फ़त में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव
लग रहे मानिंद-ए-ख़स आख़िर किनारे हाथ-पाँव
आशिक़ मू-ए-कमर की ले ख़बर ओ बे-ख़बर
सूख कर तिनका हुए हैं उस के सारे हाथ-पाँव
मेरी ख़िदमत से निहायत ख़ुश हुआ वो बद-मिज़ाज
वस्ल की शब काम आए अपने बारे हाथ-पाँव
बहर-ए-हस्ती में मिला हम को दुर-ए-मक़्सद न हैफ़
मौज के मानिंद क्या क्या हम ने मारे हाथ-पाँव
वक़्त-ए-ज़ब्ह बोला ये क़ातिल आशिक़-ए-नाद-शाद से
टुकड़े कर डाला कभी तू ने जो मारे हाथ-पाँव
खेल रहता है तवक्कुल पर मिरी औक़ात का
चलते-फिरते हैं हमारे बे-सहारे हाथ-पाँव
तीखी तीखी उन की चितवन बाँकी बाँकी उन की चाल
भोली भोली उन की सूरत प्यारे प्यारे हाथ-पाँव
(559) Peoples Rate This