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Mirza Ghalib Sharab In Hindi - Best Sharab Of Mirza Ghalib Poetry Collection In Hindi - Darsaal

Sharab Poetry of Mirza Ghalib

Sharab Poetry of Mirza Ghalib
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'

ताअत में ता रहे न मय-ओ-अँगबीं की लाग

साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़

रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ

पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है

नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल

मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ

मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब

मय से ग़रज़ नशात है किस रू-सियाह को

कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़

जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद

हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया

अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का

वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे

उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले

तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है

सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

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