तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो