लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें
शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला