ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
वगरना हम तो तवक़्क़ो ज़्यादा रखते हैं
Wasi Shah
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1743) Peoples Rate This
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए
मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए