या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए
लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुकर्रर नहीं हूँ मैं
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मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
कब वो सुनता है कहानी मेरी
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद