तिरे जवाहिर-ए-तरफ़-ए-कुलह को क्या देखें
हम औज-ए-ताला-ए-लाला-ओ-गुहर को देखते हैं
Allama Iqbal
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शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कोई उम्मीद बर नहीं आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं