शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर है आलम
लोग कहते हैं कि है पर हमें मंज़ूर नहीं
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना