सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
रू सू-ए-क़िबला वक़्त-ए-मुनाजात चाहिए
Jaun Eliya
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दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का
करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की
ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में
तुम सलामत रहो हज़ार बरस
ये लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्ता-जाँ की है
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से