साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर
तू इस क़द-ए-दिलकश से जो गुलज़ार में आवे
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हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरा
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार
कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हम-नशीं
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिखा था सो भी मिट गया