रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था
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बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
कब वो सुनता है कहानी मेरी
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद