रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
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Faiz Ahmad Faiz
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दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल
नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
जान दी दी हुई उसी की थी
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं