रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजे
कटे ज़बान तो ख़ंजर को मरहबा कहिए
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1699) Peoples Rate This
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की
जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या