पिन्हाँ था दाम-ए-सख़्त क़रीब आशियान के
उड़ने न पाए थे कि गिरफ़्तार हम हुए
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उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्ज़ा 'ग़ालिब'
इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
कब वो सुनता है कहानी मेरी
साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
नज़र लगे न कहीं इन के दस्त-ओ-बाज़ू को