पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़
आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था
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शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'