ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में
गोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना
चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ
क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
मौत का एक दिन मुअय्यन है
कम नहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं