नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
मस्ती से हर निगह तिरे रुख़ पर बिखर गई
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हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना
कोई वीरानी सी वीरानी है
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक