ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद
या रब अगर इन कर्दा गुनाहों की सज़ा है
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इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं