नाकामी-ए-निगाह है बर्क़-ए-नज़ारा-सोज़
तू वो नहीं कि तुझ को तमाशा करे कोई
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गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार
खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या रब
आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे