न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई
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चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
फ़र्दा-ओ-दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं