मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
संग उठाया था कि सर याद आया
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2198) Peoples Rate This
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरा
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी
माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी