मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
माना कि तेरे रुख़ से निगह कामयाब है
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हो चुकीं 'ग़ालिब' बलाएँ सब तमाम
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह
शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
वाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात