मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
दशना इक तेज़ सा होता मिरे ग़म-ख़्वार के पास
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मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
दशना इक तेज़ सा होता मिरे ग़म-ख़्वार के पास
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