मैं भला कब था सुख़न-गोई पे माइल 'ग़ालिब'
शेर ने की ये तमन्ना के बने फ़न मेरा
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नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए
गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए
हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद
इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब
या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए
खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआमला
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं